नई पुस्तकें >> भारत एक और परिवर्तन भारत एक और परिवर्तनपंडित ओम
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गोया संविधान के प्रारम्भ में ‘प्रस्तावना’ में ही ये लिखा जरूर गया – ‘‘हम भारत के लोग - इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित, आत्मार्पित करते हैं।’’
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
भारत देश की आम जनता ने गरीबी, अशिक्षा, अनभिज्ञता के साथ विशेष रूप से परतंत्रता की विरासत के कारण कभी न तो संविधान जाना, न जानने की कोशिश की। गोया संविधान के प्रारम्भ में ‘प्रस्तावना’ में ही ये लिखा जरूर गया – ‘‘हम भारत के लोग - इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित, आत्मार्पित करते हैं।’’ लेकिन देश की जनता को न तो ये बात कभी बताई गई न समझाई गई। यहाँ तक कि दृश्य–श्रव्य तकनीक में आमूल परिवर्तन के बावजूद आज तक कभी किसी नेता, मीडिया, सरकार ने देश के लोगों को संविधान की किताब टीवी–चैनलों से दिखाई तक नहीं-कैसी है, क्या है। बताना-समझाना तो दूर। संविधान में क्या परिवर्तन किये जा सकते हैं, सुझाव भी हैं।